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समकालीन कविताएँ >> संकर्षण प्रजापति बनारसी के हाइकु

संकर्षण प्रजापति बनारसी के हाइकु

संकर्षण प्रजापति

प्रकाशक : निरुपमा प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :104
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 9475
आईएसबीएन :9789381050569

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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

उद्बोधन

मैं ‘संकर्षण प्रजाप्रति’ के नाम से साहित्य लेखन करता हूँ। मैंने प्रस्तुत कृति ‘संकर्षण प्रजापति’ ‘बनारसी’ के हाइकु में ‘बनारसी’ शब्द मेरे गाँव का नाम है। मुझे बाल्यावस्था में लोग बनारसी नाम से बुलाते थे । हालाँकि अब पुरानी पीढ़ी के दो चार बुर्जुग ही इस नाम से बुलाते हैं। मैंने ‘संकर्षण प्रजापति’ लेखन नाम के साथ गाँव के मूल नाम बनारसी शब्द को उपनाम के रूप में जोड़कर इस कृति का नाम रखा है। यह एक संयोग है कि बनारसी शब्द बनारस के ‘बनारसीपन’ के समानान्तर भाव की अभिव्यक्ति करता है। ‘बनारसी’ नाम उपनाम के रूप में मात्र इस कृति में ही प्रयुक्त किया है।

मुझे बनारस जाने का अनेक बार अवसर मिला। इस अवसर का मैंने सदा उपयोग किया। मुझे कुछ न कुछ तथ्य मिल ही जाते थे। बनारस के घाटों व बनारस की जीवन्तता को लेकर मेरी काव्य कृति ‘अर्द्धकोणीय जलचंद्र काशी गंगा’ प्रकाशित हो चुकी है। बनारस को आधार बनाकर, बनारस से निकलने वाली ‘सोच विचार’ पत्रिका के पाँच विशेषांकों सहित मासिक अंकों का भी उपयोग किया है। तथ्यों में दोहराव, पक्ष-विपक्ष भावों को आने से रोक नहीं सका अतः जो भाव उत्पन्न होते गये उन्हें निरूपित करता गया हूँ। इस कृति में अनेक त्रुटियाँ हो सकती है। पाठकों से क्षमाप्रार्थी हूँ। बनारस अनेक व्यक्तित्त्वों की कर्मभूमि रही है। भगवान बुद्ध की भी कर्मभूमि रही है। बुद्ध से पूर्वलोप हो चुके धर्म की पुर्नस्थापना का सम्बोधन मृगदाव (सारनाथ) बनारस से किया। एक तरफ तार्किक ज्ञान भावधारणा दूसरी तरफ धार्मिक आस्था भाव धाम बनारस के जीवन में रचा बसा है। संक्षिप्तः जितना बनारस को समझना चाहता हूँ उतना ही गहराई में पहुँच रहा हूँ। गहराई फिर भी गहराई बनी हुई है।

संकर्षण प्रजापति ‘बनारसी’ के हाइकु

काशी कैसी है ?
लघु भारत जैसी
प्राचीन सूत्र।

आज की काशी
लघु भारत भाई
सूत्र लागू है।

काशी नगर
प्राचीन नगर है
इतिहास में।

ज्ञान की खान
काशी की पहचान
सिद्धी का क्षेत्र।

काशी नगर
धर्म धुरीण धारी
साथ रहते।

बनारस ही
वाराणसी का नाम
बेमानी खोज।

बनारस ने
पहचान दिलायी
संसार मध्य।

विश्व की थाती
वाराणसी या काशी
दो ही या एक।

काशी पुराण
महिमा बखानती
काशी-ही-काशी।

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